कितना बेवस सा था वो पता नहीं कहा खोया था
आँखे बोलती थी की कुछ वक़्त पहले वो रोया था
क्या मंजर था क्यों था बेक़रार
पता नहीं उसे किसका था "इंतजार"
इंतजार के पल भी अनूठे होते है
बेकरारी में हर खयालो से तकरार
फिर भी इंसान करता है "इंतजार"
इंतजार अपने महबूबा का
इंतजार किसी अजूबा का
इंतजार किसी शगूफा का
हर रंग जिस पल हो बेज़ार
शायद उसी को कहते है "इंतजार"
जिस पल वक़्त थम जाये
जिस वक़्त साँसे जम जाये
जिन साँसों पे होती है ज़िंदगी सवार
शायद उसकी को कहते है "इंतजार"
हर शय जब अंजान लगता है
इंसान खुद से भी परेशान लगता है
दिल खोजता है मन की हर बार
उसकी को तो कहते है "इंतजार"
इंतजार का भी अपना नशा होता है
मन जब बेहद थका होता
दुहाई की हर आरजू काबुल हो जाये
आने वाला छन माकूल हो जाये
विस्मित सी आँखे जब घूरती है हर बार
उसी को कहते है "इंतजार